कच्ची पीली पंखुडियों से
हरी मुलायम पल्लवियों से
छनी भोर की धूप नरम सी,
छू जाती मन को मरहम सी.
अमलतास की मधुर छाँव में
मन की कुछ उन्मत्त उड़ानें;
याद आये कुछ स्वरणिम सपने,
उम्मीदों के ताने बाने.
आज छिटक कर कहती कलियाँ:
भूल भी जा अब टीस पुरानी;
कलम उठा जीवन अनुभव की,
लिख फिर से इक नयी कहानी.